Friday, 12 January 2024

 


सुन्दर मुन्दरिए ...हो…… तेरा कौन विचारा...हो… लोक गीत का इतिहास

लोहड़ी ---13  जनवरी को मनाई जाती हैधरतीमहीने उत्तरायण की तरफ झुकती है औरमहीने दक्षिणायन की तरफ I  14  जनवरी को मकर संक्रांति होती है और इसी दिन से धरती उत्तरायण की तरफ झुकना प्रारम्भ कर देती हैइसका तात्पर्य है कि 13  जनवरी दक्षिणायन का अंतिम दिन है और सर्द ऋतू  के यौवन का भी अंतिम दिन हैमकर संक्रांति से दिन बड़े होने लगते है और सर्दी कम होने लगती है I इसी लिए सर्द ऋतू का अंतिम दिन आग ताप कर उत्सव के रूप में मनाया जाता है I जिसको लोहड़ी कहते है I आप सब को लोहड़ी की  बहुत बहुत वधाई !

पाकिस्तान से लगती वाघा सीमा से लगभग 200 किलोमीटर पार, पश्चिमी पंजाब में गांव पिंडी भट्टियां है। वहीं राजपूत मुसलमान लद्दी और फरीद खान के यहां 1547 में हुए राय अब्दुल्ला खान, जिन्हें दुनिया अब दुल्ला भट्टी बुलाती है। उनके पैदा होने से चार महीने पहले ही उनके दादा सन्दल भट्टी और बाप को मुगल सम्राट हुमायूं ने मरवा दिया। खाल में भूसा भरवा के गांव के बाहर लटकवा दिया। कारण कि उन्होंने मुगलों को लगान देने से मना कर दिया था। आज भी पंजाब की लोकगाथाओं में हुमायूं की बर्बरता के किस्से सुनने को मिलते हैं।

 

तेरा सान्दल दादा मारया। दित्ता बोरे विच पा।

मुगलां पुट्ठियां खालां लाह के। भरया नाल हवा।

 

सन्दल भट्टी वो जिनके नाम पर नाम पड़ा था, सन्दल बार का। दुल्ला भट्टी उस जमाने के रॉबिनहुड थे। अकबर उन्हें डकैत मानता था। वो अमीरों से, अकबर के जिमींदारों से, सिपाहियों से सामान लूटते और $गरीबों में बान्टते। इस तरह वो अकबर की आन्ख की किरकिरी थे, इतना सताया कि अकबर को आगरा से राजधानी लाहौर बदलनी पड़ी। लाहौर तब से पनपा है, जो आज तक बढ़ता गया। पर सच तो ये रहा कि हिन्दुस्तान का शहंशाह दहलता था दुल्ला भट्टी से। 

 

कहानी है कि एक बार सलीम थोड़े से सैनिकों के साथ भटक रहा था, दुल्ला भट्टी ने पकड़ लिया पर कुछ किया नहीं, यूं ही छोड़ दिया, ये कहकर कि दुश्मनी बाप से है, बेटे से नहीं। पाकिस्तानी पंजाब में  कहानियां चलती हैं कि पकड़ा तो दुल्ला ने अकबर को भी था। जब पकड़ा गया तो अकबर ने कहा, 'भईया मैं तो शहंशाह हूं ही नहीं, मैं तो भाण्ड हूं। दुल्ला भट्टी ने उसे भी छोड़ दिया ये कहकर कि भाण्ड को क्या मारूं और अगर अकबर होकर खुद को भाण्ड बता रहा है तो मारने का क्या फायदा?

 

#लोहड़ी तो मनाई जाती है क्योंकि भगवान् कृष्ण ने लोहिता राक्षसी को मारा, जब वो गोकुल आई थी। फिर दुल्ला भट्टी लोहड़ी से कैसे जुड़ गए? इसका भी एक किस्सा है। सुन्दरदास किसान था, उस दौर में जब सन्दल बार में मुगल सरदारों का आतन्क था। उसकी दो बेटियां थीं सुन्दरी और मुन्दरी। गांव के नम्बरदार की नीयत लड़कियों पर ठीक नहीं थी। वो सुन्दरदास को धमकाता बेटियों की शादी खुद से कराने को। सुन्दरदास ने दुल्ला भट्टी से बात कही। दुल्ला भट्टी नम्बरदार के गांव जा पहुंचा उसके खेत जला दिए। लड़कियों की शादी वहां की जहां सुन्दरदास चाहता था। शगुन में शक्कर दी। वो दिन है और आज का दिन, लोहड़ी की रात को आग जलाकर लोहड़ी मनाई जाती है। जब फसल कट कर घर आती है। गेहूं की बालियां आग में डालते हैं। गाते हैं -

 

सुन्दर मुन्दरिए ...हो

तेरा कौन विचारा...हो

दुल्ला भट्टीवाला ...हो

दुल्ले दी धी व्याही ...हो

सेर शक्कर पायी ...हो

कुड़ी दा लाल पताका ...हो

कुड़ी दा सालू पाटा ...हो

सालू कौन समेटे ...हो

मामे चूरी कुट्टी ...हो

जिमींदारां लुट्टी ...हो

जमींदार सुधाए ...हो

गिन गिन पोले लाए ...हो

इक पोला घट गया

जिमींदार वोहटी ले के नस गया

इक पोला होर आया

जिमींदार वोहटी ले के दौड़ आया

सिपाही फेर के ले गया

सिपाही नूं मारी इट्ट

भावें रो ते भावें पिट्ट

साहनूं दे लोहड़ी 

तेरी जीवे जोड़ी

साहनूं दे दाणे तेरे जीण न्याणे

 

कहते हैं अकबर की 12 हजार की सेना दुल्ला भट्टी को पकड़ पाई थी, तो सन् 1599 में धोखे से पकड़वाया। आनन-फानन फांसी दे दी गई। मियानी साहिब कब्रगाह में अब भी उनकी कब्र है।

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