सुप्रभात मित्रों , आप का दिन मंगलमय हो I
आहार के सम्बन्ध में -------जैसा अन्न, वैसा मन ] यह चार शब्द जीवन निर्वाह का सार है ] मन शुद्ध हो इसके लिए अन्न शुद्ध होना जरुरी है ] अन्न तीन प्रकार का होता है : सतोगुणी, रजोगुणी और तमोगुणी ] उपरोक्त शुद्ध अन्न का अर्थ सात्विक अन्न है ] अन्न में भी शरीर का पोषण देने की समरथा भिन्न -भिन्न होती है ] चावल में 10 गुणा गेहूं, गेहूं में 10 गुणा दूध , दूध में 10 गुणा मांस और मांस में 10 गुणा घी गुणकारी होता है ] साग खाने से रोग बढ़ते हैं ] मांस खाने से मांस बढ़ता है , दूध से शरीर बढ़ता है और घी से वीर्य बढ़ता है, ऐसा हमारे शास्त्रों में लिखा है ]
पश्चिमी देशों में यह बात आम प्रचलित है जिस महीने में अंग्रेजी का आर (R) अक्षर न हो, उसमे मछली व् अंडा नहीं खाना चाहिए, वे चार महीने है मई, जून, जुलाई , अगस्त ] इन महीनो में आर नहीं होता बाकि अंग्रेजी के महीने में आर होता है क्योकि ये चार महीने गर्मियों के होते है और मछली, अंडे की तासीर भी गर्म है ] वैसे भी इन चार महीनो में मछलियाँ बच्चे देती हैं ] इस तरह भारत में हर महीने के लिए कुछ करने के और न करने के नियम लोकोक्तियों
न करने के नियमों की लोकोक्तियाँ
(1)चैत्र गुड़
(2) वैशाखे तेल
(3)जेठे पन्थ (धूप में यात्रा करना)
(4)आषाढ़ बेल (कद्दू )
(5)सावन साग
(6) भादो दही
(7)क्वार (असू ) करेला
(8)कते (कार्तिक) मट्ठा (बासी चीजे)
(9)अगहन जीरा
(10) पौष धनिया
(11)माघ मिश्री
(12) फाल्गुन चना
"इन बातों से बचे जो भाई , उसके पास न जहमत आई" I
अर्थात चैत्र ( 15 मार्च- 15 अप्रैल ) में गुड़ न खाए , वैशाख (15 अप्रैल -15 मई ) में तेल न मले , ज्येष्ठ (15 मई - 15 जून ) में धूप में यात्रा न करना, आषाढ़ (15 जून -15 जुलाई ) में कद्दू खाने से मनाही है, सावन (15 जुलाई -15 अगस्त ) में साग न खाए , भाद्रपद (15 अगस्त -15 सितम्बर ) में दही खाना वर्जित है, आश्विन मास, (15 सितम्बर - 15 अक्टूबर ) में करेला न खाए , कार्तिक (15 अक्टूबर- 15 नवंबर ) में मट्ठा (बासी चीजे) नहीं खानी चाहिए , मार्गशीष (15 नवंबर -15 दिसंबर ) में जीरा न खाये, पौष(15 दिसंबर -15 जनवरी ) में धनिया न खाए मिश्री न खाए , माघ (15 जनवरी -15 फरवरी ) में मिश्री न खाये क्योकि मिश्री और धनिया की तासीर ठंडी होती है , फाल्गुन (15 फरवरी-15 मार्च )में चना न खाए ]
लोकोक्ति के अनुसार करने के नियमो की लोकोक्तियाँ
(1)चैत्र भर्वे
(2)वैशाखे
(3)जेठ सोवे
(4)हाड़(आषाढ़)
(5)सावन नहावे
(6)भादो
(7)असू थोड़ा खावे
(8) कते (कार्तिक)
(9)मग्घर रु -हंडावे
(10) पौष
11)माघ तेल मालावे
(12) फाल्गुन
"वैद हाकिम के नेड़े न जावे "
भिन्न -भिन्न महीनो में भिन्न भिन्न चीजे न खाने से शरीर स्वस्थ रहता है ]
चैत्र (15 मार्च- 15 अप्रैल ) और वैशाख (15 अप्रैल -15 मई ) के महीने में भवे, अर्थात सैर करना उचित है ] जेठ (15 मई -15 जून ) हाड़ (आषाढ़) (जून -जुलाई ) में सोना सेहत के लिए लाभदायक है ] वैसे भी देखा जाए तो गर्मियों के महीने होते है ] दिन बड़े और राते छोटी होती है , अत: दोपहर को शयन करने स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है ] सावन (जुलाई -अगस्त ) भादो (अगस्त -सितम्बर ) में नहाना लाभदायक है : इन दो महीनो में बरसात का मौसम होता है और कुदरत भी भिगोती रहती है ] अस्सू (आश्विन) (सितम्बर -अक्टूबर ) और कार्तिक / कते (अक्टूबर -नवंबर ) में थोड़ा खाना शरीर के लिए लाभदायक है ] ये दो महीने मौसम के बदलाव के होते है , अर्थात ग्रीष्म ऋतू का समापन और शीत ऋतू का आरम्भ होता है ] इन्ही महीनो में नवरात्रे के व्रत का भी यही महत्त्व है ताकि हम शरीर को शीत रुत के लिए तैयार कर सके ] इसी तरह मग्घर (नवंबर -दिसंबर ) और पौष (दिसंबर -जनवरी ) में रु -हंडावे का अर्थ यह है कि गर्म कपडे पहन कर सर्दी से बचाव करे ] माघ (जनवरी -फरवरी ) व् फाल्गुन (फरवरी -मार्च ) तेल की मालिश करना शरीर के लिए लाभकारी है ] अगर हम उपरोक्त लोकोकित का पालन करते है तो शरीर को हष्ट -पुष्ट रख सकते है ] आइए आहार के बारे में सोचे - विचारे , चिंतन करें , इन बातों का पालन करे और स्वास्थ्य रहे]
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